Rent Agreement Registration: अब भारत में किराए पर घर देना या लेना सिर्फ मौखिक सहमति पर नहीं चल सकता। सरकार ने किराएदारी को लेकर सख्त नियम लागू किए हैं और अब किरायेदार को तभी घर मिलेगा जब रेंट एग्रीमेंट का रजिस्ट्रेशन करवाया जाएगा। यह कदम मकान मालिक और किरायेदार दोनों की सुरक्षा के लिए उठाया गया है। नए नियमों के अनुसार, बिना पंजीकृत रेंट एग्रीमेंट के न तो कोई व्यक्ति कानूनी रूप से किरायेदार कहलाएगा और न ही उसे किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ मिल सकेगा। इससे झूठे दावे, संपत्ति विवाद और अपराधों पर अंकुश लगेगा। इसलिए यह जानना जरूरी हो गया है कि रेंट एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन अब केवल विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता बन चुका है।
रेंट एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन क्यों हुआ अनिवार्य
सरकार ने कई बार यह देखा कि बिना लिखित एग्रीमेंट के किराए पर रहने वाले लोग बाद में विवादों का कारण बनते हैं। इससे मकान मालिक और किरायेदार दोनों को परेशानी होती है। अब इसे रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने रेंट एग्रीमेंट का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है। यह कदम खासकर उन महानगरों और टियर 2 शहरों के लिए जरूरी है जहां पलायन कर लोग नौकरी या पढ़ाई के लिए रहते हैं। रजिस्टर्ड एग्रीमेंट से किराए की राशि, समयावधि, शर्तें और जिम्मेदारियां स्पष्ट होती हैं जिससे बाद में कोई भ्रम नहीं रहता। इसके अलावा, यह दस्तावेज कानूनी रूप से भी मजबूत होता है और कोर्ट में साक्ष्य के रूप में मान्य होता है।
किन राज्यों में लागू हुए सख्त नियम
फिलहाल महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह नियम सख्ती से लागू हो चुका है। खास बात यह है कि इन राज्यों की सरकारों ने अपने-अपने पोर्टल पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा भी शुरू कर दी है ताकि आम लोग बिना परेशानी यह प्रक्रिया पूरी कर सकें। वहीं अन्य राज्य भी इस नियम को जल्द लागू करने की दिशा में काम कर रहे हैं। महाराष्ट्र में तो बिना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट के किराएदार को पुलिस वेरिफिकेशन भी नहीं मिलता। अब धीरे-धीरे यह व्यवस्था पूरे देश में एक समान बनती जा रही है जिससे किराएदारी पारदर्शी और सुरक्षित बन सके।
रजिस्ट्रेशन के लिए क्या-क्या जरूरी है
रेंट एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन के लिए मकान मालिक और किरायेदार दोनों की फोटो, आधार कार्ड, पते का प्रमाण पत्र और दो गवाह जरूरी होते हैं। इसके अलावा मकान की पूरी जानकारी, किराए की राशि, जमा धनराशि (सिक्योरिटी), नोटिस पीरियड और एग्रीमेंट की अवधि भी स्पष्ट होनी चाहिए। अधिकतर राज्यों में इसे सब रजिस्ट्रार कार्यालय में या अधिकृत ऑनलाइन पोर्टल पर कराया जा सकता है। इसके लिए मामूली स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क लगता है जो आमतौर पर किराए की राशि के अनुसार तय होता है। यह प्रक्रिया अब सरल और पारदर्शी हो चुकी है।
ऑनलाइन रेंट एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन की सुविधा
डिजिटल इंडिया अभियान के तहत अब कई राज्यों ने रेंट एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन की सुविधा पूरी तरह ऑनलाइन कर दी है। महाराष्ट्र सरकार का “e-Registration” पोर्टल इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है। इसमें दोनों पक्षों को आधार नंबर के माध्यम से OTP आधारित वेरिफिकेशन करना होता है। इसके बाद रेंट एग्रीमेंट फॉर्म ऑनलाइन भरकर डॉक्यूमेंट अपलोड करने होते हैं। वीडियो कॉल के माध्यम से सत्यापन भी होता है और अंत में एक सर्टिफाइड रजिस्टर्ड एग्रीमेंट मिल जाता है जिसे कहीं भी प्रस्तुत किया जा सकता है। इस डिजिटल प्रोसेस से ना केवल समय की बचत होती है बल्कि ट्रांसपेरेंसी भी बनी रहती है।
रजिस्ट्रेशन न कराने पर क्या हो सकता है नुकसान
अगर कोई मकान मालिक बिना रजिस्ट्रेशन के रेंट एग्रीमेंट करता है और भविष्य में किरायेदार के साथ विवाद होता है, तो वह अदालत में मजबूती से अपना पक्ष नहीं रख सकता। न ही बिना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट के पुलिस वेरिफिकेशन कराया जा सकता है। कई राज्यों में यह कानूनी उल्लंघन माना जाता है और उस पर जुर्माना या अन्य दंड भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा, किराएदार अगर संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है या समय पर किराया नहीं देता, तो रजिस्ट्रेशन न होने के कारण मकान मालिक को कानूनी सहारा मिलने में परेशानी आती है।
पुलिस वेरिफिकेशन भी हुआ जरूरी
अब केवल एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन ही नहीं, बल्कि किरायेदार का पुलिस वेरिफिकेशन भी जरूरी कर दिया गया है। इसके लिए स्थानीय थाने में किरायेदार की जानकारी के साथ उसका फोटो और पहचान पत्र जमा करना होता है। कई राज्यों में पुलिस वेरिफिकेशन के बिना मकान मालिक को जुर्माना भी लग सकता है। इस वेरिफिकेशन से यह सुनिश्चित किया जाता है कि किरायेदार किसी भी आपराधिक गतिविधि से जुड़ा नहीं है। इससे अपराधों में भारी कमी आई है और समाज में विश्वास का माहौल बना है।
रजिस्टर्ड एग्रीमेंट से दोनों पक्षों को लाभ
रेंट एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन न केवल कानूनी प्रक्रिया है बल्कि एक समझदारी भरा कदम भी है। इससे दोनों पक्षों के अधिकार और कर्तव्य स्पष्ट होते हैं। किरायेदार को सुरक्षा और स्थायित्व मिलता है जबकि मकान मालिक को यह आश्वासन कि उसकी संपत्ति का दुरुपयोग नहीं होगा। विवाद की स्थिति में यह दस्तावेज कोर्ट में प्रमाण बनता है। साथ ही, बिजली-पानी के कनेक्शन, गैस सब्सिडी, बैंकिंग और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में भी यह एग्रीमेंट काम आता है। इसलिए अब रजिस्ट्रेशन करवाना केवल कानून का पालन नहीं, बल्कि अपनी सुरक्षा का तरीका भी है।
Disclaimer
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। किरायेदारी से जुड़े किसी भी निर्णय से पहले संबंधित राज्य सरकार की वेबसाइट, अधिकृत वकील या दस्तावेज़ी एजेंट से सलाह लेना जरूरी है। रेंट एग्रीमेंट की प्रक्रिया, दस्तावेज़, शुल्क और शर्तें राज्य के अनुसार बदल सकती हैं। लेखक या वेबसाइट किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी नहीं होगी जो इस जानकारी के आधार पर उठाए गए निर्णय से हो।
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